
-गंगा तट की दिव्यता ने दी कैलाश खेर जी के संगीत को आध्यात्मिक ऊँचाईयाँ
-पद्म श्री कैलाश खेर जी ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से लिया आशीर्वाद
ऋषिकेश। प्रसिद्ध आध्यात्मिक गायक, संगीतकार व पद्मश्री से सम्मानित श्री कैलाश खेर का परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आगमन हुआ। उनका गुरुभक्ति, गंगाभक्ति और मातृभूमि से जुड़ाव अद्भुत है।
पद्म श्री कैलाश खेर जी ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में विश्व विख्यात गंगा जी की आरती में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, हमारे कैलाश खेर जी का संगीत आत्मा को झंकृत करता है। उनकी वाणी केवल स्वर नहीं, संस्कृति की चेतना है। उन्होंने जिस भाव से भारत की आध्यात्मिकता को संगीत में पिरोया है, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा।
स्वामी जी ने कहा कि कला, विशेषकर संगीत, यदि सेवा और साधना से जुड़ जाए तो वह केवल मंचों पर नहीं, जीवनों में परिवर्तन लाता है। गायन केवल श्रोताओं को आनंद देने का माध्यम नहीं है, यह आत्मा को प्रभु से जोड़ने की शक्ति है और कैलाश खेर जी ने इस मंत्र को जीवन में उतारा है।
पद्मश्री कैलाश खेर ने कहा, “परमार्थ निकेतन का यह पावन गंगा तट मेरी संगीत यात्रा का आधार है। जब जीवन में संघर्ष था, भ्रम था, रास्ते नहीं थे तब इसी गंगा की लहरों और हिमालय की शांति ने मेरी आत्मा को छुआ। यह वही स्थान है जहाँ मुझे संगीत को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि साधना और सेवा के रूप में देखने की दृष्टि मिली।
उन्होंने यह भी साझा किया कि परमार्थ निकेतन की गंगा आरती और स्वामी जी का दिव्य मार्गदर्शन उनके जीवन के लिए एक दिव्य मोड़ था। मुझे यहाँ वह ऊर्जा और दृष्टि मिली, जिससे मेरे भजन केवल गीत न रहकर प्रार्थना बन गए।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा, कैलाश जी की आवाज में केवल शब्द नहीं, आत्मा की पुकार होती है। उन्होंने जिस तरह से अपने संगीत को सामाजिक संदेशों और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ा है, वह एक सच्चे कलाकार की पहचान है।
उन्होंने यह भी कहा कि कला और संस्कृति को जब जागरूकता, सेवा और करुणा के साथ प्रस्तुत किया जाता है, तब वह समाज में सकारात्मक बदलाव का माध्यम बन जाती है।
इस पावन अवसर पर पूज्य स्वामी जी ने कैलाश खेर जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया। कैलाश खेर जी की जीवन यात्रा संघर्ष से साधना तक आज की युवा पीढ़ी के लिए एक जीती-जागती प्रेरणा है। उन्होंने यह सिखाया कि यदि भीतर श्रद्धा हो, और मार्गदर्शन किसी संत का मिल जाए, तो संगीत भी सेवा का माध्यम बन सकता है।
गंगा तट पर गंगा आरती से पूर्व, कैलाश खेर जी के भजनों व संगीत ने पूरा परिसर दिव्यता से भर उठा। देश-विदेश से आए पर्यटकों ने भावविभोर होकर उन्हें सुना।