
*🌸गंगा तट पर संस्कृति और चेतना का संगम*
*💥ग्लोबल इशूज़ एंड इंडियन सॉल्यूशंस पर हुई विशेष चर्चा*
ऋषिकेश,। परमार्थ निकेतन आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय इंडियाज इंटरनेशनल मूवमेंट टू यूनाइट नेशंस (आईआईएमयूएन) सम्मेलन का आज भव्य समापन हुआ। भारत के विभिन्न राज्यों से आये सैकड़ों युवाओं ने इस अद्वितीय सम्मेलन में भाग लेकर न केवल वैश्विक नेतृत्व, नीति निर्माण और संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली को समझा, साथ ही स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में भारतीय संस्कृति, जीवन मूल्यों, सनातन परंपरा, योग और अध्यात्म की गहराईयों को भी आत्मसात किया।
तीन दिवसीय इस शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक संगोष्ठी में युवाओं ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के साथ-साथ भारत की दिव्य संस्कृति, माँ गंगा और आध्यात्मिक मूल्यों से भी गहरा जुड़ाव अनुभव किया। सम्मेलन की विशेष बात यह रही कि जहां एक ओर प्रतिभागी संयुक्त राष्ट्र के विविध अंगों की कार्यशैली को मॉडल डिबेट्स, पैनल चर्चाओं और नीति विमर्श के माध्यम से सीखे, वहीं दूसरी ओर उन्होंने परमार्थ निकेतन की दैनिक दिनचर्या में सहभागी बनकर योग, ध्यान, यज्ञ, गंगा आरती और स्वच्छता संकल्प जैसे अनुभवों के माध्यम से जीवन को भीतर से देखने की नई दृष्टि प्राप्त की। प्रतिदिन सायंकाल होने वाली दिव्य गंगा आरती ने युवाओं के मन-मस्तिष्क को भारतीय आस्था, श्रद्धा और पर्यावरण चेतना से जोड़ा।
(आईआईएमयूएन) के इस आयोजन का उद्देश्य युवाओं में वैश्विक मुद्दों की समझ तो विकसित करना तथा भारतीय दृष्टिकोण से उनका समाधान भी तलाशना है। परमार्थ निकेतन की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ऊर्जा से ओतप्रोत होकर युवाओं ने जाना कि एक सच्चा नेता वही होता है जो सेवा, सत्य, सहिष्णुता और समर्पण जैसे मूल्यों को जीता है।
इस तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान युवाओं ने न केवल वैदिक मंत्रोच्चार और यज्ञ की विधियों को जाना, बल्कि भारतीय जीवनशैली, जैसे आयुर्वेद, संयमित दिनचर्या, आत्म अनुशासन, और जल-पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर संवाद किया। सम्मेलन में “ग्लोबल इशूज़ एंड इंडियन सॉल्यूशंस” पर विशेष सेशंस भी हुए, जहाँ यह समझने का प्रयास किया गया कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा आधुनिक समस्याओं का समाधान कैसे दे सकती है।
सम्मेलन में शामिल अनेक प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह तीन दिन उनके जीवन का दिशा परिवर्तन करने वाला अनुभव रहा।
छात्रों ने कहा कि परमार्थ निकेतन आकर पहली बार समझ आया कि भारतीय संस्कृति कितनी गहराई वाली और वैज्ञानिक है। गंगा आरती ने हमारे भीतर एक अद्भुत शांति और प्रेरणा का संचार किया है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज का युवा निश्चित ही स्मार्ट, टेक्नोलॉजी से युक्त है और इनोवेटिव भी है। उसके पास ज्ञान का विशाल भंडार है और वह तेजी से बदलती दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है लेकिन आज की स्मार्टनेस के साथ-साथ उसे सस्टेनेबल और सेंसिटिव बनने की भी आवश्यकता है। सस्टेनेबिलिटी अर्थात प्रकृति, संसाधनों और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और सेंसिटिविटी अर्थात समाज, मानवीय मूल्यों और भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता।
युवाओं को न केवल अपने करियर और भविष्य की चिंता करनी चाहिए, बल्कि धरती, जलवायु, जैवविविधता और वंचित वर्गों के प्रति भी सजग रहना चाहिए। स्मार्ट वही है जो अपने ज्ञान और तकनीक का उपयोग सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के कल्याण के लिए करता है। यही सोच आने वाले कल को सुरक्षित, सुंदर और संतुलित भी बनाएगी।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि जब युवा अध्यात्म से जुड़कर सोचते हैं, तो नीतियां केवल रणनीति नहीं, करुणा बन जाती हैं। युवा शक्ति जब संस्कृति, आध्यात्म और संस्कारों से जुड़ती है, तो उसमें न केवल सोचने की क्षमता बढ़ती है, बल्कि वह समाज के लिए समाधान का स्रोत भी बन जाती है।
साध्वी जी ने कहा कि आज के युग में तकनीक और सूचना के साथ-साथ आंतरिक चेतना का जागरण भी जरूरी है। इस सम्मेलन में हमने देखा कि जब युवा अपनी जड़ों, अपने मूल्यों और परंपराओं से जुड़ते हैं, तो वे केवल विरोध नहीं करते, समाधान प्रस्तुत करते हैं। वे केवल सवाल नहीं उठाते, उत्तर भी ढूंढ़ते हैं। ऐसे युवा ही भारत के उज्जवल, समावेशी और संवेदनशील भविष्य के निर्माता हैं।
(आईआईएमयूएन) से हमने ग्लोबल डिप्लोमेसी सीखी, लेकिन परमार्थ निकेतन से हमने सीखा कि सच्चा समाधान भीतर की शांति से शुरू होता है।
सम्मेलन के समापन सत्र में पौधारोपण के साथ ग्रीन ओथ भी दिलाई, जिसमें सभी प्रतिभागियों ने पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और प्लास्टिक मुक्त जीवन के लिए कार्य करने का संकल्प लिया।
(आईआईएमयूएन) का यह सम्मेलन केवल एक शैक्षणिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह एक आध्यात्मिक जागरण, सांस्कृतिक बोध और वैचारिक क्रांति की शुरुआत थी। भारतीय संस्कृति, गंगा की पावनता, सेवा और समर्पण के मूल्यों को आत्मसात करते हुए युवा अब न केवल देश, बल्कि दुनिया के मंच पर भारत का नाम रोशन करने को तत्पर हैं।