
-विश्व शरणार्थी दिवस 2025 : आश्रय, सम्मान और अवसर, हर शरणार्थी का अधिकार
-अतिथि देवो भवः भारत की संस्कृति : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और जैन संत की के मध्य और विश्व शरणार्थी दिवस के अवसर पर सकारात्मक संवाद हुआ।
विश्व शरणार्थी दिवस एक ऐसा दिन जो उन लाखों लोगों को समर्पित है जो युद्ध, अत्याचार, जलवायु परिवर्तन या मानवाधिकार उल्लंघनों के कारण अपने देश, घर और जमीन छोड़ने को मजबूर होते हैं। यह दिवस न केवल उनकी पीड़ा को समझने और स्वीकारने का अवसर है, बल्कि उनके साहस, जिजीविषा और संघर्ष की भावना को सम्मान देने का दिन भी है।
इस वर्ष का विषय है “आश्रय, सम्मान और अवसर हर शरणार्थी का अधिकार”, जो वैश्विक समुदाय को यह स्मरण कराता है कि शरणार्थी कोई बोझ नहीं, बल्कि अवसर हैं वे भी मानव हैं जिनके सपने, अधिकार और संभावनाएं हैं।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के अनुसार, शरणार्थी वे लोग होते हैं जिन्हें अपने देश में जीवन के प्रति गंभीर खतरा होने के कारण मजबूरन पलायन करना पड़ता है। वर्ष 2024 के अंत तक विश्वभर में 11 करोड़ से अधिक लोग विस्थापन का शिकार हो चुके थे, जिनमें एक बड़ी संख्या शरणार्थियों की है। इनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
भारत ने शरणार्थियों के प्रति ऐतिहासिक रूप से सहिष्णु और करुणामयी दृष्टिकोण अपनाया है। चाहे वे तिब्बत से आए हों, बांग्लादेश के युद्ध पीड़ित हों या श्रीलंका व अफगानिस्तान से आये परिवार हो भारत ने हमेशा मानवता के नाते उन्हें शरण, सुरक्षा और सहयोग प्रदान किया है।
अतिथि देवो भवः की भावना को आत्मसात करते हुए भारत ने दिखाया है कि विविधता में भी करुणा और एकता संभव है। महात्मा गांधी जी से लेकर बाबा साहेब अंबेडकर तक, हमारे विचारकों ने समानता, मानवाधिकार और शरणार्थियों के सम्मान का संदेश दिया है।
हाल के वर्षों में युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और जलवायु परिवर्तन ने शरणार्थी संकट को और गंभीर बना दिया है। सीरिया, यूक्रेन, सूडान, म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे देशों से विस्थापन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भी लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो रहे हैं।
अक्सर शरणार्थियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और नागरिक अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है। कई बार वे भेदभाव, शोषण और हिंसा का भी शिकार होते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम उन्हें केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि अवसर और अधिकार भी दें।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि अतिथि देवो भवः यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि भारत की सनातन परंपरा, संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है। भारतीय जीवन-दृष्टि में अतिथि को देवता के रूप में देखा गया है। चाहे कोई अपने देश से आया हो या विदेश से, किसी भी धर्म, जाति या रंग का हो, जब वह आपके द्वार पर आता है, तो उसका स्वागत करना, उसकी सेवा करना और सम्मान देना भारतीय संस्कृति का मूल संस्कार है।
भारत में अतिथि सत्कार की परंपरा है। ऋग्वेद से लेकर उपनिषदों और महाभारत तक, भारतीय ग्रंथों में अतिथि के स्वागत की परंपरा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। रामायण में जब निषादराज या शबरी ने श्रीरामजी का आतिथ्य किया, तब उन्होंने केवल भक्ति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाया।
आज के दिन हम सभी को यह संकल्प लेना होगा कि हम धर्म, जाति, राष्ट्रीयता या भाषा के भेदभाव के बिना हर जरूरतमंद को इंसान के रूप में देखें। शरणार्थियों को समर्थन देना केवल नीति का नहीं, बल्कि नैतिकता और मानवीयता का प्रश्न है।